गोमेद को राहु का रत्न माना गया है यानी इसका स्वामी राहु ग्रह है। विभिन्न भाषाओं में इसका भिन्न-भिन्न नाम है। संस्कृत में इसे गोमेदक हिंदी में गोमेद और अंग्रेजी में जरकॉन का नाम दिया गया है। इसका रंग पीला सा गोमूत्र के समान होता है। इसके साथ ही यह श्यामला मिश्रित मधु की झाई की तरह दिखता है। यह आमतौर पर सिंधु नदी के किनारे, चीन तथा और अरब आदि देशों में पाया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह एक पत्थर है। यह एक पारदर्शक होने के साथ ही अपारदर्शक है जिसका रूप गहरे रंग में सबसे ज्यादा आकर्षक होता है। यह बुरे और आसमानी रंग में भी मिलता है। इतिहास में गोमेद के बारे में आचार्य वराह मिश्र ने पुराण परंपरा के आधार पर स्वचित’ बृहद संहिता’ मे रतन उत्पत्ति के संबंध में प्रकाश डाला है। उनके अनुसार दैत्यराज बली का विर्य, जो हिम पर्वत के उत्तर भाग में गिरा, उससे गोमेद का जन्म हुआ। एक दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार गोमेद दैत्यराज बली के मैदा से उत्पन्न हुआ। अतः गोमेद एक अति प्राचीन रत्न है। भारत ही नहीं, विश्व में कई देशों को इसकी पहचान प्राचीन काल से थी। यह श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड, भारत, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में पाया जाता है, लेकिन श्रीलंका और भारत का गोमेद अच्छा माना जाता है।’ रसेंद्र चूड़ामणिकार’ ने कहा गया है कि जो गाय की चर्बी के रंग यानी हल्के रंग का हो श्रेष्ठ गोमेद है। इसमें गोमूत्र सी आभा होती है। यह चिकना, स्वच्छ, अपरदार, प्रकाशमान और भारी होता है।