हीरा शुक्र का रत्न है यानि इस का स्वामी शुक्र ग्रह है। यह भी एक दुर्लभ रतन है। भारत के प्राचीन ग्रंथों में हीरे के बारे में कई तरह के उल्लेख मिलते हैं। मतलब- हीरा क्या है, कैसा होता है, कहां मिलता है। इसके गुण व दोष क्या के हैं और इसका उपयोग किन-किन क्षेत्रों में किया जा सकता है। भारत में प्राचीन काल में ही हीरे को पहचाना जा चुका था और उसका उपयोग किया जाता था। आजकल इसका प्रचलन खूब बढ़ चुका है । विभिन्न भाषाओं में इसका भिन्न-भिन्न नाम है । संस्कृत में इसे इंद्रमणि या वज्रमणि हिंदी में हीरा और अंग्रेजी में डायमंड से जाना जाता है। हीरे को रतनराज भी कहते हैं, क्योंकि यह अपने गुण, रूप व उपयोग के कारण अन्य रत्नों से सर्वश्रेष्ठ है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हीरा सबसे अधिक कठोर होता है। इसे किसी भी अन्य पदार्थ से ना तो खर्चा जा सकता है और ना ही खींचा जा सकता है। इस कारण इसके भीतर प्रवेश करने वाला प्रकाश संपूर्णत: लौट जाता है अर्थात प्रकाश का पूर्ण परावर्तन होता है। इसलिए हीरे की चमक अन्य रत्नों से अधिक होती है। प्राचीन काल से ही हीरे के विषय में ज्ञान अर्जित करने की इच्छा मानव हृदय में जागृत रहती है।