लहसुनिया केतु का रत्न है अर्थात इसका स्वामी केतु ग्रह है। संस्कृत में इसे वैदूर्य, विदुर रत्न, बाल सूर्य उर्दू और फारसी में लहसुनिया और अंग्रेजी में कैट्स-आई कहते हैं । इसमें सफेद धारियां पाई जाती हैं। जिनकी संख्या आमतौर पर दो, तीन या चार होती हैं। लेकिन जिसमें केवल ढाई धारियां हो, वह उत्तम कोटि का माना जाता है। यह चार रंगों में मिला होता है- सफेद, काला, पीला सूखे पत्ते सा और हरा । इन सभी पर सफेद धारियां अवश्य होती हैं। यह धारियां कभी-कभी भूमि के रंग की भी होती हैं। यह श्रीलंका में काबुल के अलावा भारत के विंध्याचल, हिमालय और महानदी क्षेत्र में पाया जाता है। लहसुनिया की जानकारी अति प्राचीन काल से ही लोगों को थी । इसकी पूर्वजों को आकर्षित किया था, जो आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह भारत, चीन, श्रीलंका, ब्राजील और म्यांमार में मिलता है लेकिन म्यांमार के मोगोव स्थान में पाया जाने वाला नथुनिया श्रेष्ठ माना जाता है। दरअसल जो लहसुनिया काली तथा श्वेत आभा लिए हो, स्वच्छ- धड़कदार हो, बीच-बीच में शुभ- सफेद बादल लहराता दिखे या जिसमें श्वेत रेखाएं हो, श्रेष्ठ उत्तम होता है। यह सफेद धारी जितनी चमकदार और सीधी हो, लहसुनिया रत्न उतना ही श्रेष्ठ माना जाता है। कभी-कभी लहसुनिया पर धारियां ना होकर प्रकाश सा होता है, जिसे चादर कहते हैं, जो वक्ष पर घिसने से स्वच्छ हो जाता है। इसे भी उत्तम व शुभ सोनिया माना जाता है।