पुखराज एक कीमती रतन है। इसे गुरु रतन भी कहा जाता है यानि इस का स्वामी बृहस्पति है। पुखराज हो हीरा और माणिक्य के बाद सबसे कठोर रतन है, लेकिन साथ ही साथ यह मुलायम भी होता है। इसीलिए इसे तरसते समय अत्यंत सावधानी बरती जाती है। विभिन्न भाषाओं में इसका भिन्न-भिन्न नाम है इसे संस्कृत में पुष्प राग और हिंदी में पुखराज कहा जाता है। पुखराज मुख्यतः 5 रंगों का होता है-1. हल्दी के रंग जैसा 2. केसर के समान केसरिया 3. नींबू के छिलके के समान 4. सोने के रंग जैसा और 5. सफेद लेकिन पीली झाई के लिए। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार- शुद्ध व श्रेष्ठ पुखराज पीली कांति वाला, हाथ में लेने पर वजनी लगने वाला, धब्बों से रहित, पारदर्शी, चिकना, छिद्ररहित, मुलायम, चंपा के फूल के रंग जैसा चमकदार होता है। यह क्षय रोग नाशक तथा यश कीर्ति, सुख वैभव आयु में वृद्धि करने वाला रतन है। इसका इतिहास भी अति प्राचीन है। आचार्य वराह मिहिर के अनुसार जब दैतिय राजबली के चर्म हिमाचल प्रदेश तो वे पुखराज के रूप में परिवर्तित हो गए।